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सिर्फ धागा मत समझना हाथ की कलाई का

सभी पाठकों को रक्षाबंधन की बहुत बहुत बधाई, मेरी रचना सभी भाइयों की तरफ से बहिन को उपहार।
                                        *सिर्फ धागा मत समझना हाथ    की कलाई का*
राखी आस्था है,राखी विश्वास है।
हर भाई की खुशी हर बहिन की आस है।
सिर्फ धागा मत समझना हाथ की कलाई का,
ये धागा नही रक्षा का हार है।
राखी पूजा है ,राखी प्रेम है।
भाई बहिन का मेल है।           सिर्फ धागा मत समझना कलाई का,
इस कच्चे धागे का बड़ा खेल है।
राखी पर्व है,राखी गर्व है,हर सपने की पहचान  है।
सिर्फ धागा मत समझना कलाई का,
राखी छोटे परिंदे का बड़ा आसमान है।
राखी रिश्ता है,राखी बंधन है।  भाई का बहिन से मंथन है।
सिर्फ धागा मत समझना कलाई का,
राखी परिवार का बचपन है।
हर बहिन को खुशी मिले, हर को भाई प्यार मिले।
भाई बहिन के रिश्ते को एक नया आयाम मिले।
हर कलाई रक्षा करे,कच्चे धागे के नाम पर।
हर बहिन महफूज रहे,सच्चे भाई का साथ मिले।
हर भाई का हाथ सजेगा, हर एक बहिन खुशहाल  रहे।
जब धागे को बांध लिया है, मेरी  बहिन आबाद रहे।
  
          *स्वरूप जैन'जुगनू'*

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Swaroop jain poet

देश नही कटने दूँगा

      देश नही कटने दूँगा हंसवाहिनी,ज्ञानदायिनी सरस्वती को वंदन कर लूं। सुखदायिनी,पालनहारी भारत भू अभिनन्दन कर लूं। जान लुटा दी इस धरती पर,अमर ज्योति प्रज्जवलित कर लूं। वीर सैनिकों की कुर्बानी को नतमस्तक वंदन कर लूं। आग लगी हो जब सीने में,देशभक्ति के नाम की। मरकर भी तुम पौध लगाओ,भारत भू के शान की। जिस पर मैने जान लुटा दी, वो धरती कल्याणी है। कण कण जिसका तीर्थ मानो, भूमि स्वर्ग से प्यारी है।। जहाँ भगत, आजाद की आंधी,तुफानो को तैयार करो। जहाँ बापू की अहिंसा शक्ति,धर्म-धैर्य निर्माण करो। जिस धरती की विजय पताका,प्रकृति यौवन झूले। उस भारत की पावन धरती पर मेरा मन डोले।। मरकर भी मैं अंतिम इच्छा, दिल मे मेरे रखता हूँ। दो गज की भारत भूमि और कफ़न तिरंगा मुझे मिले।। तन मन धन और यौवन इस पर, लख लख बार लुटा दूँगा। मेरा तिरंगा अमर रहेगा, इस पर जान लुटा दूँगा। भारत की रक्षा के खातिर इतना ही लिखता हूं सौगंध है मिट्टी की हमको,देश नही कटने दूँगा।      स्वरूप जैन'जुगनू'