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देश नही कटने दूँगा



      देश नही कटने दूँगा

हंसवाहिनी,ज्ञानदायिनी सरस्वती को वंदन कर लूं।
सुखदायिनी,पालनहारी भारत भू अभिनन्दन कर लूं।
जान लुटा दी इस धरती पर,अमर ज्योति प्रज्जवलित कर लूं।
वीर सैनिकों की कुर्बानी को नतमस्तक वंदन कर लूं।

आग लगी हो जब सीने में,देशभक्ति के नाम की।
मरकर भी तुम पौध लगाओ,भारत भू के शान की।
जिस पर मैने जान लुटा दी, वो धरती कल्याणी है।
कण कण जिसका तीर्थ मानो, भूमि स्वर्ग से प्यारी है।।

जहाँ भगत, आजाद की आंधी,तुफानो को तैयार करो।
जहाँ बापू की अहिंसा शक्ति,धर्म-धैर्य निर्माण करो।
जिस धरती की विजय पताका,प्रकृति यौवन झूले।
उस भारत की पावन धरती पर मेरा मन डोले।।
मरकर भी मैं अंतिम इच्छा, दिल मे मेरे रखता हूँ।
दो गज की भारत भूमि और कफ़न तिरंगा मुझे मिले।।

तन मन धन और यौवन इस पर, लख लख बार लुटा दूँगा।
मेरा तिरंगा अमर रहेगा, इस पर जान लुटा दूँगा।
भारत की रक्षा के खातिर इतना ही लिखता हूं
सौगंध है मिट्टी की हमको,देश नही कटने दूँगा।

     स्वरूप जैन'जुगनू'

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